महापौर-सभापति व निगम से त्रस्त कोरबा वासी
विधानसभा चुनाव 15 साल के मंत्री-विधायक के लिए परीक्षा की घड़ी है। प्रतिद्वंदी के रूप में मजबूत दावेदार को खड़ा देख इनकी आधी हिम्मत वैसे ही टूट गई है किन्तु दिखावा भी जरूरी है। ऐसे तामझाम और दिखावटी माहौल के बूते 15 साल के विधायक व मंत्री अपनी चुनावी नाव पार कराने की कश्मकश में लगे हैं। अपने सामने विपक्ष का मजबूत और दमदार प्रत्याशी देख भीतर ही भीतर हार का भय समा चुका है। इनके इशारे पर काम करने वाले महापौर, सभापति और निगम के अधिकारियों से कोरबावासी त्रस्त हो चुके हैं और उनमें भी बदलाव की इच्छा पूरी तरह से जागृत है। वैसे भी 15 साल का समय बहुत होता है जिसमें विधायक और मंत्री ने कोई ऐसा काम करके नहीं दिखाया जिससे आम जनता को कहीं पर भी राहत मिले। नगर निगम के वार्डों में समस्याओं का अंबार है किन्तु महापौर, सभापति और जिम्मेदार निगम के अधिकारी 10 साल से गहरी नींद में हैं। शहर का चौतरफा कबाड़ा भी इन्हें जागती आंखों से नजर नहीं आ रहा। अवैध कब्जा की चपेट में पूरा इलाका है और राजस्व मंत्री अपने पद के मद में चूर हैं। जिस तरह भीतर से डरा हुआ इंसान बाहर शोर मचाकर अपने आप को निडर बताने की कोशिश करता है वही स्थिति राजस्व मंत्री की हो चुकी है और चुनावी शोर, तामझाम, लाव-लश्कर दिखाकर अपने डर को दबाने व छिपाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं। दूसरी तरफ मतदाताओं को बड़ी बेसब्री से मतदान की तारीख का इंतजार है जब 15 साल के विधायक और उनके इशारे पर चलने वाले जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के कुशासन से छुटकारा पाने के लिए पसंद के उम्मीदवार के नाम पर बटन दबाएंगे।